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हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी किश्ती थी डूबी वहां

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कितना अजीब भ्रम है ये मानना कि सुन्दरता
हम हार गए क्योंकि हमने खुद से कहा कि हम
ताश का जोकर, और अपनों की ठोकर, अक्सर वाजी पलट देते है।
ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग
मैं ज़िन्दगी से नहीं अपने आप से नाराज़
छोटी सी जिंदगी है, हँस के जियो, भुला के गम सारे दिल से जियो, अपने लिए न सही अपनों के लिए जियो।
दर्द की दवा न हो तो दर्द को ही दवा समझ
हसने वालो के साथ तो दुनिया हसती है लेकिन रोने वाला अकेले ही
सभी खुशहाल परिवार एक दुसरे से मिलते जुलते हैं, हर एक नाखुश परिवार अपने ही किसी कारण से
दुख तो मुफ्त में मिलते है लेकिन सुख की कीमत तो देनी ही