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जब प्यार करने वाले अपने जज़्बातों को दबाकर रिश्तों को कोई दूसरा नाम देते है

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हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी किश्ती थी डूबी वहां
दर्द की दवा न हो तो दर्द को ही दवा समझ
हम आने वाले ग़म को खिंचतान कर आज की ख़ुशी पे ले आते है, और उस ख़ुशी में ज़हर घोल
आंखें खुली रखो तो आंसूं भी काले और बंद करू तो सपने भी
दुनिया में प्यार से ज़्यादा दर्द कुछ
जब प्यार करने वाले अपने जज़्बातों को दबाकर, रिश्तों को कोई दूसरा नाम देते है, तो कभी न कभी, कहीं न कहीं जज्बातों फूट फूटके रोने लगते है
सभी खुशहाल परिवार एक दुसरे से मिलते जुलते हैं, हर एक नाखुश परिवार अपने ही किसी कारण से
हसने वालो के साथ तो दुनिया हसती है लेकिन रोने वाला अकेले ही
दुःख तुमने मुझे नहीं दिया है मैंने अपने आप को
ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग