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हवाओं ने खूब कोशिश की, मगर चिराग आंधियों में जलते रहे।
दुःख तुमने मुझे नहीं दिया है मैंने अपने आप को
ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग
यू तो हजारों लोग मिल जायेगे लेकिन हाथ पकड़कर चलना सिखाने वाला भाई, बिना नसीब नही मिलता.
तुमसे मिलकर बात करके जो खुशी होती ह वह खुशी आज तक किसी से मुझे नसीब नहीं हुई
घायल तो यहां हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी किश्ती थी डूबी वहां
हसने वालो के साथ तो दुनिया हसती है लेकिन रोने वाला अकेले ही
मैं ज़िन्दगी से नहीं अपने आप से नाराज़
शिकवा तो बहुत है तुझसे ऐ ज़िन्दगी पर चुप इसलिए हूँ, क्योंकि जो दिया है तुमने वो भी कितनो को नसीब नही होता।