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पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है

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ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
पाप निःसंदेह बुरा है; लेकिन उससे भी बुरा है पुन्य का अहंकार।
आँसुओ का कोई वज़न नहीं होता, लेकिन निकल जाने पर मन हल्का हो जाता है
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
लम्हे तो है बीते सारे लेकिन लगते है आज भी जैसे हो वो कल
हटाए थे जो राह से दोस्तों की वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
मुश्किलें आएंगी, लेकिन हार मानना कभी मत।