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ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता

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दुनिया से दोस्ती अच्छी है मगर भगवान की यारी की तो
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
बहन वे हैं जो हमें वफादारी, दोस्ती और परिवार के बारे में सिखाते हैं।
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा दोस्तों को आज़माते जाइए
मित्रता सबसे शुद्ध प्रेम है।