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दर्द की दवा न हो तो दर्द को ही दवा समझ

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ज़िन्दगी में एक हसी वो होती है जो इंसान अपने ग़म को छुपाने के लिए खुद सीखता है
सभी खुशहाल परिवार एक दुसरे से मिलते जुलते हैं, हर एक नाखुश परिवार अपने ही किसी कारण से
मोहब्बत ने यू शिला दिया है मुझे, जो मेरे हक में ना था वो दर्द भी दिया है मुझे।
मेरी जिंदगी एक बंद किताब है, जिसे आज तक किसी ने खोला नहीं, जिसने खोला उसने पढा नही, जिसने पढा उसने समझा नही, और जो समझ सका वो मिला नहीं।
दर्द तब और भी गहरा होता है जब, हमें अपने ही लोगो से धोखा मिलता है
जल्दबाज़ी और गुस्से में किए गये कार्य सदैव दुखदायी होते है, क्रोध वो तुफान है जिसके थमने के बाद हुए नुकसान का पता चलता है…
दर्द की दवा न हो, तो दर्द को ही दवा समझ लेना चाहिए…
यदि आप वर्तमान में स्थिति में नहीं हैं, तो आप अनिश्चितता की प्रतीक्षा कर सकते हैं या हंगामा के साथ बैठे हैं और दर्द और दु: ख में लौट रहे हैं।
जब ‘दर्द’ और ‘कड़वी’ बोली दोनों मीठी लगने लगे तब समझ लीजिये कि जीना आ गया
घर से दूर रहने पर मां समझ आती है, और नौकरी करने पर पिता. हैप्पी फादर्स डे