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आंखें खुली रखो तो आंसूं भी काले और बंद करू तो सपने भी

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ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग
जिसका दिल ग़म की तन्हाइयों में उजड़ गया हो, वो बाहर से कितना ही सेहतमंद लगता हो
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी किश्ती थी डूबी वहां
दुःख तुमने मुझे नहीं दिया है मैंने अपने आप को
दुनिया में प्यार से ज़्यादा दर्द कुछ
मुझे बहुत कुछ पढ़ना है, कुछ किताबें, कुछ लोग, कुछ आँखें.
ज़िन्दगी में एक हसी वो होती है जो इंसान अपने ग़म को छुपाने के लिए खुद सीखता है
दुःख छुपाने के कमाल को हसी कहते
दुख तो मुफ्त में मिलते है लेकिन सुख की कीमत तो देनी ही
हर दुःख आने वाले सुख की चिठ्ठी होती है, और हर नुक्सान होने वाले फायदे का