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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी

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दिखावे के शरीफ बनने की आदत नही है हमारी, शब्द चाहे जैसे भी हो खुलेआम बोलते है।
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा दोस्तों को आज़माते जाइए
झूठ और दिखावे की रफ्तार कितनी भी तेज हो, पर मंजिल तक केवल सच ही पहुँचता है
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का कि दोस्ती की तरह दुश्मनी निभाया कर
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए