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दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा बढ़ो अकेला काफिला खुद बन जाएगा !
हम को यारों ने याद भी न रखा जौन' यारों के यार थे हम तो
हटाए थे जो राह से दोस्तों की वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे