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ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का कि दोस्ती की तरह दुश्मनी निभाया कर
हटाए थे जो राह से दोस्तों की वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी हम तिरी दोस्ती से डरते हैं
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी
तुम्हारी सफलता पर भरोसा होगा, बस तुम मेहनत में कमी मत करना।