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अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
जब दुनिया हमारे लिए जटिल हो जाती हैं तब दोस्तीं नाम की डोरी हमारे हाथ में होती हैं।
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा दोस्तों को आज़माते जाइए
दोस्ती में भी उतार चढाव होते हैं। आपके मन अलग होते हैं, कभी कभी आप दोनों अलग हो जाते हैं, लेकिन फिर वापस एक साथ हो जाते हैं। यही तो दोस्ती हैं।