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अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए

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ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनकर धोका देते है।
लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी हम तिरी दोस्ती से डरते हैं
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
मेरे हाथों की लकीरें खास हैं, क्योंकि दोस्त के रूप में भाई पास है।
एक सच्चा दोस्त वह होता हैं जो तब भी हमारे साथ चलता जब पूरी दुनिया हमसे मुंह मोड़ लेती हैं।
एक भाई एक दोस्त नहीं हो सकता है, लेकिन एक दोस्त हमेशा एक भाई रहेगा।
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का कि दोस्ती की तरह दुश्मनी निभाया कर
दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या किया रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता