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ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा

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दोस्त दो-चार निकलते हैं कहीं लाखों में जितने होते हैं सिवा उतने ही कम होते
मेरी उड़ानों को खुद पर यकीन है क्योंकि तू मेरा आकाश है घनघोर अंधियारी में तू यार मेरे, तमस मिटाता प्रकाश
आ गया ‘जौहर’ अजब उल्टा ज़माना क्या कहें दोस्त वो करते हैं बातें जो अदू करते
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनकर धोका देते
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनाकर धोखा देते है
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनकर धोका देते है।
मित्र और दुश्मन, दोनों ही जरूरी हैं; एक जीने के लिए, दूसरा जीने का कारण बताने के लिए।
दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या किया रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते