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जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं
जो लोग खुद से प्यार करते हैं, वो दूसरों के दिल पर वार नहीं करते हैं !
बीत गया जो सो चिद्यता, न भूलेगा जमाना।
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली दिल ने दुनिया से दोस्ती कर
दोस्त दो-चार निकलते हैं कहीं लाखों में जितने होते हैं सिवा उतने ही कम होते
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल
इंतजार करने वाले को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है।
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते