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अहंकार में डूबे इंसान को, ना तो खुद की गलतियां दिखाई देती है और ना दूसरों की “अच्छी” बात।
महत्वाकांक्षा के बिना बुद्धिमानी ऐसी ही है जैसे पर के बिना एक पक्षी l
जब इंसान अन्दर से टूटता है तो बहार से खामोश हो जाता है।
कर्म भूमी की दुनिया में, श्रम सभी को करना है.
कभी तो चौक के देखे कोई इंसान तरफ, किसी की आंख में हमको भी इंतजार दिखे ।
सभी को खुश तो भगवान भी नहीं रख सकता फिर आप तो केवल एक इंसान हैं।
शिक्षक अपने छात्रों को बेहतर इंसान बनाने और अच्छी शिक्षा देने के लिए कई रचनात्मक और नई तरीकों का उपयोग करते हैं।
ज़िन्दगी में कुछ ज़ख्म ऐसे होते है जो कभी नहीं भरते बस इंसान उन्हें छुपाने का हुनर सीख जाता है
जब इंसान की जरूरत बदल जाती है तो उसका आपसे बात करने का तरीका भी बदल जाता है।
यदि हम स्वतंत्र नहीं हैं तो कोई भी हमारा आदर नहीं करेगा।