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दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी
हम को यारों ने याद भी न रखा जौन' यारों के यार थे हम तो
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
लम्हे तो है बीते सारे लेकिन लगते है आज भी जैसे हो वो कल
हटाए थे जो राह से दोस्तों की वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
मुनाफा का तो पता नहीं लेकिन बेचने वाले तो यादों को भी कारोबार बना कर बेच
Luck का तो पता नहीं लेकिन अवसर जरूर मिलती है मेहनत करने वालों को
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए