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हलके-हलके बढ़ रही है चेहरे की लकिरें; लगता है, नादानी और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है

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इंसान का ‘ज़मीर’ और शतरंज का ‘वज़ीर’ एक जैसा होता है क्योकी अगर दोनो मर गए, तो खेल खत्म
वक्त जब शिकार करता है हर दिशा से वार करता है.
गलतियाँ जीवन का एक हिस्सा है, पर इन्हें स्वीकार करने का साहस बहुत कम लोगों में होता है।
क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरू होकर पश्चाताप पर समाप्त होता है।
लोग आपको नहीं आपके अच्छे वक़्त को अहमियत देते हैं
क्यां हुआ जो हम अब अजनबी बन गए, इतनी जल्दी दूरियाँ बढ़ गई
पैरों से कांटा निकल जाए तो चलने में मज़ा आता है, और मन से अहंकार निकल जाए तो जीवन जिने में मज़ा आता है।
जब इंसान की जरूरत बदल जाती है तो उसका आपसे बात करने का तरीका भी बदल जाता है।
ताश का जोकर और अपनों की ठोकर अक्सर बाजी घुमा देते हैं।
न जाने कितने ही रिश्ते खत्म कर दिये इस भ्रम ने कि मैं सही हूं, सिर्फ मैं ही सही हूं