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ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
हम को यारों ने याद भी न रखा जौन' यारों के यार थे हम तो
हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे.तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा, बढ़कर अकेला तू पहल कर हौसले तुझको. काफिला खुद बन जाएगा।
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
हटाए थे जो राह से दोस्तों की वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है