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न जाने किस कॉलेज से ली थी मोहब्बत की डिग्री उसने ! जितने भी मुझसे वादे किये थे सब फ़र्ज़ी निकले.
ये दिन भी क़यामत की तरह गुज़रा है ! न जाने क्या बात थी हर बात पर रोना आया.
भाई का प्यार दुआ से कम नहीं,भले ही आज मैं तेरे पास नहीं,
ज़रा सी वक़्त ने करवट क्या ली ! गैरों की लाइन में सबसे आगे अपनों को पाया हमने.
कोई सिखादे मुझे भी अपने वादों से मुक़र जाना ! बहुत थक चुका हूँ निभाते-निभाते.
कुछ रिश्ते इतने अजीब होते हैं कि उन्हें तोड़ने वाला टूटने वाले से ज्यादा रोता है.
अभी धूप निकलने के बाद भी जो सोया है ! वो ज़रूर तेरी याद में रातभर रोया है.
जब से वो छोड़ गया है, ज़िंदगी बेमतलब सी हो गई है.
मुसाफ़िर कल भी था मुसाफ़िर आज भी हूँ,कल अपनों की तलाश में था आज अपनी तलाश मैं हूँ!
मैंने कुछ वक्त चुप रहकर भी देख लिया, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता