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हर दुःख आने वाले सुख की चिठ्ठी होती है, और हर नुक्सान होने वाले फायदे का इशारा. – देवदास
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी किश्ती थी डूबी वहां
ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग
हम हार गए क्योंकि हमने खुद से कहा कि हम
लोग शादी करते हैं क्योंकि वे प्राकृतिक शक्तियों का प्रतिरोध नहीं कर पाते, हालांकि उनमें से बहुत से लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि वे संभवत
हम आने वाले ग़म को खिंचतान कर आज की ख़ुशी पे ले आते है, और उस ख़ुशी में ज़हर घोल
हर रक्षा बंधन मैं अपने मन के भीतर तुम्हारी सुख, समृद्धि का संकल्प लेता हूँ।
कर्म सदैव सुख न ला सके परन्तु कर्म के बिना सुख नहीं मिलता।
हसने वालो के साथ तो दुनिया हसती है लेकिन रोने वाला अकेले ही
जिसका दिल ग़म की तन्हाइयों में उजड़ गया हो, वो बाहर से कितना ही सेहतमंद लगता हो