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तरक्कियों की दौड़ में उसी का जोर चल गया, बना के रास्ता जो भीड़ से निकल गया। ज़िंदगी का सफ़र मानो तो मौज है वरना समस्या तो रोज
जो रातों को कोशिशों में गंवा देते हैं, वहीं सपनों की चिंगारी को और हवा
असंभव शब्द का प्रयोग केवल कायर ही करते हैं, बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना मार्ग स्वयं
तरक्कियों की दौड़ में उसी का जोर चल गया बना के रास्ता जो भीड़ से निकल
घायल तो यहां हर परिंदा है। मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है।
"अपेक्षा" और "उपेक्षा" दोनों का होना ही गलत है "अपेक्षा" खुद को घायल करती है "उपेक्षा" दूसरों को।
घायल तो यहां हर परिंदा है. मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है.
एक दिन वर्षों का संघर्ष, बहुत खूबसूरत तरीके से तुमसे टकराएगा… हर छोटा बदलाव बड़ी कामयाबी का हिस्सा
घायल तो यहां हर परिंदा है। मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है!
अपने लक्ष्य के लिए जोशीले और जुनूनी बनिए… विश्वास रखिए, परिश्रम का फल सफलता ही