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उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

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और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के
और क्या देखने को बाक़ी है आप से दिल लगा के देख लिया
न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।
धोका ऐसे ही नही मिलता, भला करना पड़ता है लोगो का
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
कामयाब होने के लिए अकेले ही आगे बढ़ना पड़ता है