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अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
तुम्हें देखा तो मोहब्बत भी समझ आई, वरना इस लफ्ज़ की तारीफ सिर्फ ही सुना करता था मैं !
छुपाने लगा हूँ कुछ राज अपने आप से, जब से मोहब्बत हुई है हमें आप से !
सफर मोहब्बत का अब खत्म ही समझो, तेरे रवइये से जुदाई की महक आती है
जाने क्यों लोग मोहब्बत करते हैं, क्यों रातो को एक दूसरे मै खोते हैं। – गुड मॉर्निंग
मगर लोग मोहब्बत का सुबूत ज़रूर मांगते है।
मोहब्बत ने यू शिला दिया है मुझे, जो मेरे हक में ना था वो दर्द भी दिया है मुझे।
कहा मिलेगा तुम्हे मुझ जैसा कोई, जो तुम्हारे सितम भी सहे, और तुमसे मोहब्बत भी करे!
यूँ सिमट गया मेरा प्यार चंद अल्फाज़ो में ! जब उसने कहा मोहब्बत तो है पर तुमसे नहीं.
न जाने किस कॉलेज से ली थी मोहब्बत की डिग्री उसने ! जितने भी मुझसे वादे किये थे सब फ़र्ज़ी निकले.