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हर ठोकर इस बात की चेतावनी देती है, की अब संभाल जाओ

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उदास कर जाती है मुझे हर रोज ये शाम, ऐसा लगता है जैसे कोई भुला रहा है धीरे धीरे
ताश का जोकर और अपनों की ठोकर अक्सर बाजी घुमा देते हैं।
निकाल दिया उसने अपनी जिंदगी से भीगे कागज़ की तरह, ना लिखने के काबिल छोड़ा ना जलने के
आंसूं किसी के दुःख को समझता नहीं है, और न ही किसी की ख़ुशी को
कुछ लोग डायरी इसलिए लिखते है, क्योंकि उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं होता
किसी को मनाने से पहले यह जरुर जान लेना, की वह तुमसे नाराज है या परेशान
दुनिया की हर चीज ठोकर लगने से टूट जाती है, एक कामयाबी ही है जो ठोकर लगने के बाद आती है।
क्यां हुआ जो हम अब अजनबी बन गए, इतनी जल्दी दूरियाँ बढ़ गई
तेरा इंतजार करता हूँ रोज रातों में, खुद को सांसों में समेटा हुआ देखता हूँ
दिल के रिश्ते तो किस्मत से मिलते है, वरना मुलाक़ात तो हजारो से होती है