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मैंने कुछ वक्त चुप रहकर भी देख लिया, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता

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तेरा इंतजार करता हूँ रोज रातों में, खुद को सांसों में समेटा हुआ देखता हूँ
मुड़ कर देखा तो वक्त खड़ा था जिंदगी और मौत के बीच पड़ा था
माना दूरियां कुछ बढ़ सी गई है, मगर तेरे हिस्से का वक्त हम आज भी तनहा गुजरते हैं
पर वक़्त बीत रहा है कागज के टुकड़े कमाने के लिए।
उदास कर जाती है मुझे हर रोज ये शाम, ऐसा लगता है जैसे कोई भुला रहा है धीरे धीरे
कितना भी पकड़ो फिसलता जरूर है, ये वक्त है साहब बदलता जरूर है।
दिल के रिश्ते तो किस्मत से मिलते है, वरना मुलाक़ात तो हजारो से होती है
ज़रा सी वक़्त ने करवट क्या ली ! गैरों की लाइन में सबसे आगे अपनों को पाया हमने.
वक्त से लड़कर जो नसीब बदल दे, इंसान वही जो अपनी तक़दीर बदल दे
वो एक रोज सारी खुशियाँ लेकर लौट आएगी, इस उम्मीद को लेकर बहाल रही है जिंदगी