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झूठ और दिखावे की रफ्तार कितनी भी तेज हो, पर मंजिल तक केवल सच ही पहुँचता है
बहुत दुर तक जाना पड़ता है सिर्फ यह जानने के लिए..कि नज़दीक कौन है
हलके-हलके बढ़ रही है चेहरे की लकिरें; लगता है, नादानी और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है
लोग आपको नहीं आपके अच्छे वक़्त को अहमियत देते हैं
हम ज़िन्दगी भर जमीनों की कीमत पर इतराते रहे, हवा ने अपनी औकात मांगी तो खरीदी हुई ज़मीने बिक गयी।
जीवन की एक कड़वी सच्चाई, यहां झूठ आसानी से बिक जाता है और सच को कोई खरीदना नहीं चाहता।
जिंदगी में हर जगह हम जीत चाहते है..सिर्फ फूलवाले की दुकान ऐसी है, जहाँ हम कहते है की हार चाहिए..क्योकि हम मगवान से जीत नहीं सकते
उस जगह पे हमेशा खामोश रहना, जहाँ दो कौड़ी के लोग अपनी हैसियत के गुण गाते हैं
क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरू होकर पश्चाताप पर समाप्त होता है।
गुरुर किस बात का साहब, आज मिट्टी के उपर, तो कल मिट्टी के निचे