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झूठ और दिखावे की रफ्तार कितनी भी तेज हो, पर मंजिल तक केवल सच ही पहुँचता है
इंसान का ‘ज़मीर’ और शतरंज का ‘वज़ीर’ एक जैसा होता है क्योकी अगर दोनो मर गए, तो खेल खत्म
रूठे हुए को मनाना जिंदगी है, दुसरों को हंसाना जिंदगी है। कोई जीतकर खुश हुआ तो क्या हुआ, सब कुछ हारकर मुस्कुराना भी जिंदगी है।
सच को तो तमीज़ ही नहीं बात करने की, झूठ को देखो कितना मीठा बोलता है!
हलके-हलके बढ़ रही है चेहरे की लकिरें; लगता है, नादानी और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है
बहुत दुर तक जाना पड़ता है सिर्फ यह जानने के लिए..कि नज़दीक कौन है
सारी उम्र गुज़री यूं ही रिश्तों की तुरपाई में, मन के रिश्ते पक्के निकले, बाकि उधड़ गए कच्ची सिलाई में
जब इंसान की जरूरत बदल जाती है तो उसका आपसे बात करने का तरीका भी बदल जाता है।
न जाने कितने ही रिश्ते खत्म कर दिये इस भ्रम ने कि मैं सही हूं, सिर्फ मैं ही सही हूं
गुरुर किस बात का साहब, आज मिट्टी के उपर, तो कल मिट्टी के निचे