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इंसान का ‘ज़मीर’ और शतरंज का ‘वज़ीर’ एक जैसा होता है क्योकी अगर दोनो मर गए, तो खेल खत्म

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जब इंसान की जरूरत बदल जाती है तो उसका आपसे बात करने का तरीका भी बदल जाता है।
बहुत दुर तक जाना पड़ता है सिर्फ यह जानने के लिए..कि नज़दीक कौन है
पैरों से कांटा निकल जाए तो चलने में मज़ा आता है, और मन से अहंकार निकल जाए तो जीवन जिने में मज़ा आता है।
क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरू होकर पश्चाताप पर समाप्त होता है।
झूठ इसलिए बिक जाता है, क्योंकि सच खरीदने की हैसियत सबकी नही होती।
जिंदगी में हर जगह हम जीत चाहते है..सिर्फ फूलवाले की दुकान ऐसी है, जहाँ हम कहते है की हार चाहिए..क्योकि हम मगवान से जीत नहीं सकते
हजारों ख़्वाब टूटते हैं, तब कहीं एक सुबह होती है.
मिलता तो बहुत कुछ है इस ज़िंदगी में, बस हम गिनती उसी की करते है, जो हासिल न हो सका
हलके-हलके बढ़ रही है चेहरे की लकिरें; लगता है, नादानी और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है
गुरुर किस बात का साहब, आज मिट्टी के उपर, तो कल मिट्टी के निचे