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इंसान का ‘ज़मीर’ और शतरंज का ‘वज़ीर’ एक जैसा होता है क्योकी अगर दोनो मर गए, तो खेल खत्म
जब इंसान तन्हा चलना सीख जाता है तब वो दुनिया को समझ चुका
इंसान नीचे बैठा दौलत गिनता है कल इतनी थी आज इतनी बढ़ गयी। ऊपर वाला हंसता है और इंसान की सांसे गिनता है, कल इतनी थी आज इतनी कम
इंसान अपनी कमाई के हिसाब से नहीं, अपनी ज़रूरत के हिसाब से गरीब होता है।
खुद पर काबु रखना एक परिपक्व इंसान की निशानी है; वक्त से पहले खुद पर काबु खो देना अपरिपक्वता की पहचान है।
इंसान की सफलता की पहली सीढ़ी शिक्षा है।
संघर्ष इंसान को मजबूत बनाता है, फिर चाहे वो कितना भी कमजोर क्यों न हो!
आपका अनुभव ही आपको एक बेहतर इंसान बनाता है इसलिए अनुभव लेते रहिए और जिंदगी जीते चलिए।
कभी भी शादियों के भोजन की बुराई मत करना, कोई पिता वर्षो कमाता है एक दिन की दावत के लिए।
मुस्कुराते हुए इंसान की कभी जेबे देखना ! हो सकता है रूमाल गिला मिले.