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इससे ज्यादा इश्क का सबूत और क्या दूं साहब मैंने उसके जिस्म को नहीं उसकी रूह को चुना है

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होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
अब ऐसे नफरत जताते हो
यहाँ तो लोग नफरत भी करते है प्यार की तरह।
अब बात नफरत की है तो नफरत ही सही।
तेरी एक मुस्कान से सुधर गयी तबियत मेरी, बताओ यार इश्क करते हो या इलाज करते हो!
मैं इश्क लिखूं और उसे हो जाए काश मेरी शायरी में कोई ऐसे खो जाए
धोखा देकर ऐसे चले गए,
रूह तक कांप जाती है, तेरे ना होने के ख्याल को सोचकर ही,
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के
हमें उम्र से हमने तुमको चाहा है, जिस उम्र में हम जिस्म से वकीफ ना थे..