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कौन समझता है किसी को कोई यहां झूठे दिलासे, कोरा सा अपनापन मिलता है मुफ्त में यहां।
ऐसी दुनिया का आगाज़ करो जो कल करो सो आज़ करो - चंदन की कलम
लम्हे तो है बीते सारे लेकिन लगते है आज भी जैसे हो वो कल
ज़िन्दगी के बहुत से इम्तिहान बाकी हैं अभी तो बस चलना सीखा है नापने को पूरी कायनात बाकी है। गिरूंगा सीखूंगा उठूंगा अभी सीखने को पूरा संसार बाकी है।
अस्तित्व की इस लड़ाई में एक संघर्ष दायित्व का भी है।
एतबार किया खता नहीं एतबार से बडी खता नहीं
जब इंसान जिंदगी कि अपनी सभी इच्छाओं से, मुक्त हो जाता है या कहो वो अपने सारे इन्द्रियों को, अपने काबु में रखता है, तब ही उसे शांति मिल सकती है!
व्यक्ति कर्मों में जीता है वर्षों में नहीं
लम्हे तो है बीते सारे लेकिन लगते है आज भी जैसे हो वो कल
कौन ज्यादा मजबूर है वो जो सड़कों पर सुकून की नींद सोता है या वो जो लाखों के घर में भी नींद के लिये तरसता है।