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मैं प्यार का इस्तीफा
तुम ना ही मिलते तो अच्छा था,
तुम से जो मोहबत थी ना,
मैं इश्क लिखूं और उसे हो जाए काश मेरी शायरी में कोई ऐसे खो जाए
इससे ज्यादा इश्क का सबूत और क्या दूं साहब मैंने उसके जिस्म को नहीं उसकी रूह को चुना है
आप प्रेम में खड़े नहीं हो सकते, आप प्रेम में चढ़ नहीं सकते, आप प्रेम में उड़ नहीं सकते - आप प्रेम में सिर्फ डूब सकते हैं।
जैसे प्यार को मानते ही नहीं थे।
चाहे जितना भी टाइम लग जाए पर मुझे इस जिंदगी में सिर्फ तू ही चाहिए
बात जो भी हो सामने बया होती है ए दोस्त इश्क़ में चालाकियाँ कहाँ होती है
अब बात नफरत की है तो नफरत ही सही।