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निकाल दिया उसने अपनी जिंदगी से भीगे कागज़ की तरह, ना लिखने के काबिल छोड़ा ना जलने के
दूसरों की बातों में आकर वैसा कभी मत बनना, जैसा तुम खुद कभी बनना नही चाहते।
बात जो भी हो सामने बया होती है ए दोस्त इश्क़ में चालाकियाँ कहाँ होती है
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा थाहमीं सो गए दास्तां कहते-कहते
नही हो अब तुम हिस्सा मेरी किसी हसरत के,
ज़िन्दगी भर नहीं दूंगा।
तेरी हर एक बात को हंसते-हंसते सह लूंगा बस मोहब्बत में शामिल कोई और ना हो
मैं इश्क लिखूं और उसे हो जाए काश मेरी शायरी में कोई ऐसे खो जाए
दुनिया को नफरत का सुबूत नहीं देना पड़ता,
मैं प्यार का इस्तीफा