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जो श्रम से लजाता है, वह सदैव परतंत्र रहता है।

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हार और जीत सिक्के के दो पहलू की तरह होते हैं, पहले के बिना दूसरा और दूसरे के बिना पहला अधूरा होता है।
बिना कठोर परिश्रम सिर्फ परेशानियाँ बढ़ती है ख़ुशियाँ नहीं।
हमें शिक्षा केवल नौकरी पाने के लिए ही नहीं लेनी चाहिए। जन सेवा व मानव हित का कार्यभार भी हमारे युवा वर्ग के हाथों में ही है।
सदैव अकेले खड़े होने का साहस कीजिए, दुनिया ज्ञान देती है, साथ नहीं
जो लोग आलसी होते हैं, ऐसे लोगों का कोई भविष्य और वर्तमान नहीं होता है।
कठोर परिश्रम सफलता की गारंटी नहीं है, लेकिन इसके बिना सफल होने का एक भी Chance नहीं है।
हार और जीत सिक्के के दो पहलू की तरह होते हैं, पहले के बिना दूसरा और दूसरे के बिना पहला अधूरा होता है।
मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो परंतु उसकी परछाई सदैव काली होती है…!! “मैं श्रेष्ठ हूँ” यह आत्मविश्वास है लेकिन…. “सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूँ” यह अहंकार है
कर्म भूमी की दुनिया में, श्रम सभी को करना है.
ज्ञान सिर्फ किताबों से ही नहीं मिलता, जीवन की परिस्थितियां भी इंसान को बहुत कुछ सीखा देती हैं।