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जब इंसान अन्दर से टूटता है तो बहार से खामोश हो जाता
शब्द ही इंसान का आइना होते हैं, शक्ल तो उम्र और समय के साथ बदल जाती है
थोड़ा है, थोड़ी की जरूरत है। जिंदगी फिर भी यहां खूबसूरत है।
जब इंसान अन्दर से टूटता है तो बहार से खामोश हो जाता है।
सभी को खुश तो भगवान भी नहीं रख सकता फिर आप तो केवल एक इंसान हैं।
इंसान अपनी कमाई के हिसाब से नहीं, अपनी ज़रूरत के हिसाब से गरीब होता
मिलता तो बहुत कुछ है इस ज़िन्दगी में, बस हम गिनती उसी की करते है जो हासिल ना हो सका.
इंसान का असली चेहरा तब सामने आता हैं जब वो नशे में होता हैं... फिर चाहे नशा पैसे का हो, पद का हो, शक़्ल का हो या शराब का...
चुपके से एक दिन रख आऊं, सभी खुशियां उनके सिरहाने में, जिन्होंने एक अरसा बिता दिया, मुझे बेहतर इंसान बनाने में।
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं। रात भी आई थी, और चांद भी था। हाँ मगर नींद नहीं।