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तुम्हें देखा तो मोहब्बत भी समझ आई, वरना इस लफ्ज़ की तारीफ सिर्फ ही सुना करता था मैं !
ईश्वर से कोई भी प्रेम कर सकता है क्योंकि वह आपसे कुछ नहीं मांगता। पर अपने पास खड़े व्यक्ति से प्रेम करने की कीमत जीवन से चुकानी पड़ती है।
ख़ुशी, शांति और प्रेम – ये कोई आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं हैं। यह सब तो समझदारीपूर्वक जीने की शुरुआत है।
आज तो हम ख़ूब रुलायेंगे उन्हें, सुना है उसे रोते हुए लिपट जाने की आदत
डट कर करना सामना तुम मुश्किलों का, एक दिन वक्त भी तुम्हारा गुलाम होगा
हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे.. तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा, बढ़कर अकेला तू पहल कर देखकर तुझको, काफिला खुद बन जाएगा।
मुझसे मत पूछना कि मैं तुमसे इश्क़ क्यों करता हूं, क्योंकि फिर मुझे वजह बतानी पड़ेगी अपने जीने की !
अब तो शायद ही मुझसे मुहब्बत करेगा कोई, तेरी तस्वीर जो मेरी आखों में साफ नजर आती है !
मेहनत अगर आदत बन जाए तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती है।
आपकी आदत बदलने की इच्छा, आपके वही रहने की इच्छा से बड़ी होनी चाहिए I