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जो लोग ठोकर खाकर भी चलते रहते हैं, वही एक दिन मंजिल पाते हैं।
आजाद रहिए विचारों से लेकिन बंधे रहिये संस्कारों से।
अगर तू चलने के लिए तैयार हो तो, मंजिल तुम्हारे सामने झुकने के लिए तैयार हो जायेगी
सफलता पाने के लिए सबसे पहले हमें खुद पर विश्वाश करना होगा कि हम कर सकते है।
अपना गिरवी रखो, जब तक आपकी वजह से मंज़िल न मिल जाए।
जितना कठिन संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी
मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो परंतु उसकी परछाई सदैव काली होती है…!! “मैं श्रेष्ठ हूँ” यह आत्मविश्वास है लेकिन…. “सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूँ” यह अहंकार है
झूठ और दिखावे की रफ्तार कितनी भी तेज हो, पर मंजिल तक केवल सच ही पहुँचता है
एक अच्छी योजना जिसे अब हिंसक रूप से क्रियान्वित किया गया है, वह अगले सप्ताह निष्पादित एक संपूर्ण योजना से बेहतर है।
जो लोग ठोकर खाकर भी चलते रहते हैं, वही एक दिन मंजिल पाते हैं