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"अपेक्षा" और "उपेक्षा" दोनों का होना ही गलत है "अपेक्षा" खुद को घायल करती है "उपेक्षा" दूसरों को।
घायल तो यहां हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा
जो तुफानों में पलते जा रहे हैं, वहीं दुनिया बदलते जा रहे है- जिगर मुरादाबादी!
ज्यादा बात करने वाले कुछ नहीं कर पाते और कुछ कर दिखानेवाले ज्यादा बात करने में यकिन नहीं रखते!
जल्दबाज़ी और गुस्से में किए गये कार्य सदैव दुखदायी होते है, क्रोध वो तुफान है जिसके थमने के बाद हुए नुकसान का पता चलता है
एक ऐसा लक्ष्य निर्धारित करें जो आपको सुबह बिस्तर से उठने पर मजबूर कर दें.
अगर जीत के बाद बहके नहीं, तो बहुत दूर तक जे सकते हैं.
किसी की निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को नहीं छोड़े, क्योंकि अक्सर लक्ष्य मिलते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती है।
तरक्कियों की दौड़ में उसी का जोर चल गया, बना के रास्ता जो भीड़ से निकल गया!
घायल तो यहां हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है