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जमाने में वही लोग हम पर उंगली उठाते हैं जिनकी हमें छूने की औकात नहीं

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गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख ! जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !!
मिसाल क़ायम करने के लिए
तरक्कियों की दौड़ में उसी का जोर चल गया
अगर ख्वाईश कुछ अलग करने की है तो दिल और दिमाग के बीच बगावत लाजमी
कभी कभी किसी की जुनून को देख कर अपने आप में भी जुनून आ जाता
जो रातों को कोशिशों में गंवा देते हैं, वहीं सपनों की चिंगारी को और हवा
न कर फ़िक्र की जमाना क्या सोचेगा, ज़माने को अपनी ही फ़िक्र से फुरसत कहाँ!
घायल तो यहां हर परिंदा है
जमाने में वही लोग हम पर उंगली उठाते हैं जिनकी हमें छूने की औकात नहीं होती
असंभव शब्द का प्रयोग केवल कायर ही करते हैं