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सहमी हुई थी झोपड़ी बारिश के खौफ से, मेहलो की आरजू थी के बारिश जरा जम के बरसे

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बारिश के बाद तार पर टंगी आख़री बूंद से पूछना, क्या होता है अकेला पन।
ज़िंदगी ना कर जिद उनसे बात करने की, वो बड़े लोग हैं अपनी मर्जी से बात करेंगे
ताकत आवाज़ में नहीं अपने विचार में रखो.. क्योंकि फसल बारीश से होती है बाढ़ से नहीं…
अरे इतनी नफरत है उसे मुझसे की मैं मर भी जाऊं, तो उसे कोई फर्क नही पड़ेगा
माना दूरियां कुछ बढ़ सी गई है, मगर तेरे हिस्से का वक्त हम आज भी तनहा गुजरते हैं
मैने अपनी परछाई से पूछा तुम मेरे साथ क्यों चलती हो, परछाई ने मुस्कुरा कर बोला अरे पागल मेरे सिवा तेरा है ही कौन
सबर मेरा कोई क्या ही आजमाएगा, मैंने हंस के छोड़ा है उसे जो मुझे सबसे प्यारा था
पतझड़ में ही रिश्तों की परख होती है, बारिश में तो हर पत्ता हरा ही दिखता है
बड़ी अजीब होती है ये यादें, कभी हसा देती है, कभी रुला देती है
किस्मत की लकीरों पर ऐतबार करना छोड़ दिया, जब इंसान बदल सकते हैं तो किस्मत क्यों नहीं