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कितना अजीब भ्रम है ये मानना कि सुन्दरता

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कितना अजीब है लोगों का अंदाज-ऐ-मोहब्बत, रोज एक नया जख्म देकर कहते हैं अपना ख्याल रखना
मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो परंतु उसकी परछाई सदैव काली होती है…!! “मैं श्रेष्ठ हूँ” यह आत्मविश्वास है लेकिन…. “सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूँ” यह अहंकार है
जिंदगी उस अजनबी मोड़ पर ले आई है, तुम चुप हो मुझसे और मैं चुप हूँ सबसे!
कितने अजीब हैं ये जमाने के लोग, खिलौना छोड़ कर जज़बातों से खेलते है।
हमे तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जाणते मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बीना।
प्यार हम दोनों ने किया मगर तड़पना सिर्फ मेरे नसीब
जब प्यार करने वाले अपने जज़्बातों को दबाकर रिश्तों को कोई दूसरा नाम देते है
दुनिया में प्यार से ज़्यादा दर्द कुछ
कितना अजीब भ्रम है ये मानना कि सुन्दरता अच्छाई है
बड़ी अजीब होती है ये यादें, कभी हसा देती है, कभी रुला देती है