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चलो अब जाने भी दो क्या करोगे दास्ताँ सुनकर, ख़ामोशी तुम समझोगे नहीं और बयाँ हमसे होगा

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वो ढूँढ रहे थे मुझे भूल जाने के तरीके, मैंने उनसे खफा होकर उनकी मुश्किल आसान कर
अगर सजा दे ही चुके हो तो हाल न पूछना, हम अगर बेगुनाह निकले तो तुम्हे अफ़सोस
तुझे भुलाने की जिद्द थी, अब भुलाने का ख्वाब है, ना जिद्द पूरी हुई और ना
जब इंसान तन्हा चलना सीख जाता है तब वो दुनिया को समझ चुका
झुकने से रिश्ता गहरा हो तो झुक जाओ, पर हर बार आपको ही झुकना पड़े तो रुक
आज तो हम ख़ूब रुलायेंगे उन्हें, सुना है उसे रोते हुए लिपट जाने की आदत
हकीकत कुछ और ही होती है, हर गुमसुम इन्सान पागल नहीं
किसी को इतना भी ना चाहो कि फिर भुला ही ना
बहुत मजबूत हो जाते है वो लोग, जिनके पास खोने को कुछ नहीं
अकेले रहने में और अकेले हो जाने में बहुत फर्क होता