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दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता’बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी

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मैं फ़ायदा देखता तो दोस्ती यहाँ तक नहीं पहुंचती, मैं तुझ जैसा होता तो दोस्ती इश्क में नहीं बदलती।
मेरी उड़ानों को खुद पर यकीन है क्योंकि तू मेरा आकाश है घनघोर अंधियारी में तू यार मेरे, तमस मिटाता प्रकाश
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल
प्यार की डोर से बंधा प्यारा सा रिश्ता, भाई- बहन से बढ़कर नहीं कोई नाता।
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार
मेरी बहन, तू है मेरा सबसे प्यारा रिश्ता, इस रक्षाबंधन पर तुझे मेरी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं और आशीर्वाद !
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं
दोस्ती में भी उतार चढाव होते हैं। आपके मन अलग होते हैं, कभी कभी आप दोनों अलग हो जाते हैं, लेकिन फिर वापस एक साथ हो जाते हैं। यही तो दोस्ती हैं।