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शर्म नहीं तू गर्व हैं बहना, मेरी कलम का लिखा तू हर्फ़ है बहना तेरी नीयत मेरी पहचान है बहना, तू मेरी इकलौती शान है बहना

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मेरे भीतर पनपे विश्वास की जड़ तुम हो बहना, मेरी जीत का एकलौता श्रेय तुम हो बहना
बहन उन्हीं के हिस्से आती है, जिनके होते हैं कर्म महान सभ्यताओं का संरक्षण करती, नारी ही करती है कल्याण
बहना मेरी हर सुबह की भोर हो तुम, हर सवालों का जवाब और मेरे मन में उठा शोर हो तुम
हर रक्षा बंधन मैं अपने मन के भीतर तुम्हारी सुख, समृद्धि का संकल्प लेता हूँ । संकल्प
कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती है, मगर पहचान छिन लेती है।
जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि झुकता वही है जिसमें जान होती है, अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है।
खुला जब-जब पन्ना कहानी का मेरी , मैंने पाया बहना सदा इसमें नाम छुपा तुम्हारा
भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं.
मेरे भीतर पनपे विश्वास की जड़ तुम हो बहना, मेरी जीत का एकलौता श्रेय तुम हो बहना
आशाओं की किरण ओझिल हो नहीं सकती नारी भी कभी यूँ ही अवला हो नहीं सकती मेरी बहन को देखा मैंने, जो वीरांगना की परिभाषा हैं उसके होने पर मैं निर्भय, वो मेरी विजय की आशा है