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बड़ी अजीब होती है ये यादें, कभी हसा देती है, कभी रुला देती है
जहां में डूबा था मुझे वही किनारा चाहिए, तू फिर आ मेरे पास मुझे तू दोबारा चाहिए
कुछ पल का साथ देकर तुमने, पल पल के लिए बेचैन कर दिया
दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
वो सोचती होगी बड़े चैन से सो रहा हु मै, उसे क्या पता ओढ़ कर चादर रो रहा हु में
अगर ख्वाईश कुछ अलग करने की है तो दिल और दिमाग के बीच बगावत लाजमी है I
अरे इतनी नफरत है उसे मुझसे की मैं मर भी जाऊं, तो उसे कोई फर्क नही पड़ेगा
खाली जेब लेकर निकलो कभी बाजार में, जनाब वहम दूर हो जाएगा इज्जत कमाने का
अगर ख्वाईश कुछ अलग करने की है तो दिल और दिमाग के बीच बगावत लाजमी है।
केवल वे ही लोग, जो अपने दिमाग का कचरा किनारे रख सकते हैं, वास्तव में प्रेम और करुणा के काबिल होते हैं ।