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इससे ज्यादा इश्क का सबूत और क्या दूं साहब मैंने उसके जिस्म को नहीं उसकी रूह को चुना है

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चाहे जितना भी टाइम लग जाए पर मुझे इस जिंदगी में सिर्फ तू ही चाहिए
दुनिया को नफरत का सुबूत नहीं देना पड़ता,
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के
समझ नहीं आता किस पर भरोसा करू,
मैं प्यार का इस्तीफा
समझ लेना तुम मुझे मेरे बिना कहे खामोशी समझना भी प्रेम ही है
अब वो नफरत में बदल गयी है।
सोचता हूं आज इश्क जता दूं क्या तुमसे मोहब्बत है यह तुम्हें बता दूं क्या.
छुपा रहा हूं इश्क अभी सबसे पर एक दिन सरेआम तुम्हें लेने आऊंगा
धोखा देकर ऐसे चले गए,