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कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती है, मगर पहचान छिन लेती है।
ज़िन्दगी पल-पल ढलती है, जैसे रेत मुठ्ठी से फिसलती है कुछ खोकर पछताना क्यों, ज़िंदगी जैसी भी है बस एक ही बार मिलती है
मैं ज़िन्दगी से नहीं, अपने आप से नाराज़ हूँ – अर्जुन
ज़िन्दगी एक ढलती शाम की तरह है, जिसमें कहीं उथल-पुथल है, तो कहीं थोड़ा आराम भी
सबसे शक्तिशाली पद हासिल उतना कठिन नहीं होता जितना उस पर बने रहना होता हैं.
ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन मंजिल वही पाता है जो ठहरता नहीं।
घाव ठिक हो जाने से, हादसे नही भूले जाते..
सच्ची दोस्ती के रंग गहरे पक्के होते हैं, ज़िन्दगी की धूप में भी उड़ा नही करते।
पाप निःसंदेह बुरा है; लेकिन उससे भी बुरा है पुन्य का अहंकार।
जीवन का सच न तो सुनाया जा सकता है और न ही पढ़ा जा सकता है, उसे समझना होगा।