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जब ‘दर्द’ और ‘कड़वी’ बोली दोनों मीठी लगने लगे तब समझ लीजिये कि जीना आ गया

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दर्द की दवा न हो, तो दर्द को ही दवा समझ लेना चाहिए…
जल्दबाज़ी और गुस्से में किए गये कार्य सदैव दुखदायी होते है, क्रोध वो तुफान है जिसके थमने के बाद हुए नुकसान का पता चलता है…
वह मासूम लगता है लेकिन वह जीना जानता है, गहरे दर्द में हंसना जानता है!
जब तक किसी काम को हम शुरू नहीं करते, तब तक वह नामुमकिन ही लगता हैं…
जब मेहनत करने के बाद भी सपने पुरे नहीं होते तो रास्ते बदलीए सिद्धांत नहीं क्योंकी, पेड़ भी हमेशा पत्ते बदलता है जड़ नहीं
मंजिलें बड़ी ज़िद्दी होती हैं हासिल कहाँ नसीब से होती हैं मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैं।
हम सभी को दो में से एक दर्द से पीड़ित होना चाहिए अनुशासन का दर्द या पछतावे का दर्द। अंतर यह है कि अनुशासन का वज़न ज़्यादा होता है जबकि अफसोस का वज़न बहुत ज़्यादा होता है।
हज़ारों उलझनें राहों में और कोशिशें बेहिसाब, इसी का नाम है ज़िंदगी चलते रहिए जनाब- गुलज़ार
वह व्यक्ति कुछ नहीं पा सकता जिसने उम्मीद खो दी है….
जो चीज़ किसी ने मेहनत से हासिल की हो, वो आप अपनी ख्वाहिश से हासिल नहीं कर सकते…