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प्रेम की गहराई को जानने के लिए आपके कम-से-कम कुछ अंश को मिटना होगा। वरना किसी दूसरे के लिए जगह नहीं होगी ।

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प्रेम कोई सहूलियत का साधन नहीं है। यह खुद को मिटाने की एक प्रक्रिया है।
जिस व्यक्ति के अंदर स्वयं को खोने का डर नहीं है, जो इससे मुक्त हो चुका है, वही प्रेम को जान सकता है, वही प्रेम बन सकता है ।
वासना एक ज़बरदस्त ज़रूरत है; प्रेम कोई ज़रूरत नहीं है। जब आप प्रेम करते हैं, तब आप तृप्त हो जाते हैं, और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं रहती। प्रेम में, आप बस यहाँ बैठकर अपना पूरा जीवन बिता सकते हैं।
केवल वे ही लोग, जो अपने दिमाग का कचरा किनारे रख सकते हैं, वास्तव में प्रेम और करुणा के काबिल होते हैं ।
प्रेम तो खुद का पूर्ण समर्पण है इसमें ईगो और अनादर का कोई स्थान नहीं होता.
निपुणता हमेशा आपके आसपास के लोगों के प्रति आपके प्रेम और परवाह का नतीजा होनी चाहिए - न कि एक मशीनी और उदासीन कार्य-भावना का।
तर्क से परे एक आयाम है। जब तक आप वहां नहीं पहुंच जाते, आप ना तो प्रेम की मधुरता, ना ही ईश्वर को जान पाएंगे ।
प्रेम कोई सहूलियत का साधन नहीं है। यह खुद को मिटाने की एक प्रक्रिया है।
ईश्वर से कोई भी प्रेम कर सकता है क्योंकि वह आपसे कुछ नहीं मांगता। पर अपने पास खड़े व्यक्ति से प्रेम करने की कीमत जीवन से चुकानी पड़ती है ।
प्रेम कोई सहूलियत का साधन नहीं है। यह खुद को मिटाने की एक प्रक्रिया है ।