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सपनों को सच करने से पहले सपनों को ध्यान से देखना होता
घायल तो यहां हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा
"अपेक्षा" और "उपेक्षा" दोनों का होना ही गलत है "अपेक्षा" खुद को घायल करती है "उपेक्षा" दूसरों को।
खुद की तरक्की में इतना वक़्त लगा दो
जो रातों को कोशिशों में गंवा देते हैं, वहीं सपनों की चिंगारी को और हवा
मिसाल क़ायम करने के लिए
जमाने में वही लोग हम पर उंगली उठाते हैं जिनकी हमें छूने की औकात नहीं
घायल तो यहां हर परिंदा है। मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है।
समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो
जिस काम में काम करने की हद पार ना फिर वो काम किसी काम का