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मैं ज़िन्दगी से नहीं, अपने आप से नाराज़ हूँ – अर्जुन
ज़िन्दगी भी अक्सर कमाल करती है कभी देती है जवाब तो कभी सवाल करती है।
व्यक्ति कर्मों में जीता है वर्षों में नहीं
‘जिन्दगी’ का कोई रिमोट नहीं होता, उठो जागो और खुद बदलो
अगर ज़िन्दगी में कुछ पाना है तो अपने तरीक़े बदलो इरादे नहीं.
ज़िन्दगी पल-पल ढलती है, जैसे रेत मुठ्ठी से फिसलती है कुछ खोकर पछताना क्यों, ज़िंदगी जैसी भी है बस एक ही बार मिलती है।
जब दूसरे सो रहे हों, आप काम/पढ़ाई करो. . जो उनके सपने हैं, वो ज़िन्दगी आप जियोगे
अब बात नफरत की है तो नफरत ही सही।
ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है, मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग है
किसी से नफरत रखने में उतना मजा नहीं है, जितना उसे माफ कर भुला देने में है।